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Convocation ceremony: दींक्षात समारोह में जब रक्षा मंत्री ने अपने टीचर को किया याद , भावुक होकर कही ये बड़ी बातें

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के इंटेग्रल यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह (Convocation ceremony) के दौरान सफल अभ्यर्थियों के बीच डिग्री का वितरण किया।

लखनऊ : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के इंटेग्रल यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह (Convocation ceremony) के दौरान सफल अभ्यर्थियों के बीच डिग्री का वितरण किया। इस दौरान उन्होंने छात्रों को जीवन का मंत्र दिया। सफलता के साथ-साथ असफलता को स्वीकार करने की भी बात कही। जीवन के रहस्यों को बताते हुए उन्होंने कहा कि जीवन के (Convocation ceremony) प्रति सकारात्मक नजरिया ही आपको सफल बनाएगी। विफलता के बीच से अगर आप सकारात्मकता को ढूंढ़ते हैं तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।

रक्षा मंत्री ने बताई ये बड़ी बाते

राजनाथ सिंह ने अपनी शिक्षा का भी जिक्र किया। राजनीति में आने से पहले अपने शिक्षक होने की बात भी छात्रों से कही। इसके अलावा गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाले मौलवी शिक्षक का जिक्र किया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि मैं गांव में प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था। वहां पर पढ़ाने वाले एक पंडित जी थे और एक मौलवी साहब। मौलवी साहब पढ़ाते (रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के इंटेग्रल यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह (Convocation ceremony) के दौरान सफल अभ्यर्थियों के बीच डिग्री का वितरण किया।) भी थे और फिजिकल ट्रेनिंग भी कराते थे। मुझे याद है कि हमारी एक्सरसाइज ठीक नहीं होती थी।

मौलवी साहब तब एक पतली सी छड़ी रखा करते थे। उससे वे हमारे पैरों पर धीरे से मारते थे। उनकी छड़ी की मार से चोट कम लगती, लेकिन उसका डर हमें बना रहता था। उनके एक्सरसाइज को हम सीख लेते थे। राजनाथ सिंह ने मौलवी साहब शिक्षक की कहानी को बढ़ाते हुए कहा कि जब 38-39 वर्ष की उम्र में मैं उत्तर प्रदेश का शिक्षा मंत्री बना। अपने घर जा रहा था। गाड़ियों का लंबा काफिला था। आप जानते ही हैं कि जब कोई मंत्री बन जाता है तो एक, दो, चार नहीं, सैकड़ों गाड़ियां पीछे चलती हैं।

मौलवी साहब के जज्बे को किया सलाम

राजनाथ सिंह ने कहा कि मेरे गांव वाली सड़क पर ही करीब 15-16 किलोमीटर पहले मौलवी साहब का घर था। गांव जाने की सड़क वही थी। मौलवी साहब रिटायर हो गए थे। बुजुर्ग थे। आंखों से दिखाई नहीं दे रहा था। उन्हें पता चला कि जिस राजनाथ को पढ़ाया, वह शिक्षा मंत्री बन गया है। इसी रास्ते से गुजरने वाला है। दो- तीन बच्चों को साथ लिया। सड़क के पास आ गए। आंख बंद किए खड़े थे। गाड़ी में हमारे साथ एक सज्जन बैठे थे। उन्होंने बताया कि ये मौलवी साहब आपके शिक्षक रह चुके हैं। इन्होंने आपको पढ़ाया था।

राजनाथ ने कहा कि मैं अपने जज्बे को रोक नहीं पाया। गाड़ी आगे निकल गई थी। बैक करवाया। उनके पास पहुंचा। मौलवी साहब हाथों में माला लिए खड़े थे। मैंने उनके पैर छुए। मौलवी साहब की आंखों से आंसू निकलने लगा। एक छात्र की सफलता शिक्षक को कितनी खुशी देती है, आप समझ सकते हैं। वे मेरी गाड़ी निकलने तक रोते रहे। कल्पना कीजिए, मैं मौलवी साहब से दशकों बाद मिला था। उस क्षण को मैं जीवन भर नहीं भूल सकता।

अपने टीचर को किया याद

संबोधित करते हुए कहा कि राजनीति में आने से पहले मैं एक शिक्षक था। भले ही मैं आज के समय में राजनीति के मैदान में हूं, लेकिन कहीं न कहीं मेरे जेहन में वह शिक्षक जिंदा है। जब मैं शिक्षक और छात्रों के बीच जाता हूं, तो उस शिक्षक को दिल-दिमाग में जीवित पाता हूं। राजनीति में आने को लेकर उन्होंने कहा कि न ऐसी कोई योजना थी। न ही कोई इच्छा थी। संयोगवश राजनीति से जुड़ाव हुआ।राजनाथ सिंह ने दीक्षांत समारोह की प्रासंगिकता का जिक्र करते हुए कहा कि यह आपके इस संस्थान में तहजीब सीखने का अंत है। शिक्षा जीवन भर चलता रहेगा। याद रखिए, यह दीक्षांत समारोह है, शिक्षांत समारोह नहीं। जिसने सीखने की प्रवृति नहीं रखते हैं तो वे सफल नहीं हो सकते।

‘सफलता और असफलता जीवन में साथ-साथ चलती है’

सफलता और असफलता जीवन में साथ-साथ चलती है। आपको दोनों के बीच सकारात्मक भाव को विकसित करने की जरूरत है। बिजली का बल्ब बनाने वाले थॉमस एडिशन का जिक्र करते हुए राजनाथ ने कहा कि वे फिलामेंट का ट्रायल कर रहे थे। 2000 मेटल पर फिलामेंट का ट्रायल किया गया। लेकिन, सफलता नहीं मिली। उन्होंने एक बार कहा था कि हमने दो हजार मेटल को देखा है कि वे फिलामेंट बनने के लिए फिट नहीं है। यह सीख तो हमें मिल गई है। यह होता है असफलता के बीच का पॉजिटिव नजरिया।

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