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Rajasthan से 1200 KM का सफर तय कर अयोध्या पहुंचाए घी-कलश, आज सरयू में घी-स्नान, इसी से होगी रामलला की पहली आरती

Jodhpur: जोधपुर से 11 बैलगाड़ियों में रवाना (Rajasthan) किए गए घी के 108 कलश 10 दिन में 1200 किलोमीटर की दूरी तय करके गुरुवार को अयोध्या पहुंचे। इसी घी से रामलला की पहली आरती और हवन होगा। अयोध्या में रामलला जल्द भव्य राम मंदिर में विराजेंगे। 22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा उत्सव प्रस्तावित है। कलशों में 600 किलो घी है। शुक्रवार को घी के कलशों को सरयू स्नान कराया जाएगा। शनिवार को इसे श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सौंप दिया जाएगा। घी लेकर जोधपुर के बनाड़ स्थित महर्षि संदीपनी धर्म गोशाला के संचालक संदीपनी महाराज पहुंचे।

बैलगाड़ियों मे रख कराई नगर परिक्रमा

शनिवार को अयोध्या में घी के कलशों को बैलगाड़ियों में रख नगर परिक्रमा कराई जाएगी। इसके बाद घी का अभिषेक होगा और फिर इसे मंदिर ट्रस्ट को सौंपा जाएगा। गुरुवार को घी की बैलगाड़ियां जब अयोध्या पहुंचीं तो श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरी महाराज और महासचिव चंपत राय ने कलशों की आरती उतार कर स्वागत किया। इस दौरान अनिल मिश्र, सोहन सोलंकी, विनायक देश पांडे सहित विहिप के नेता भी मौजूद रहे।

27 नवंबर को जोधपुर से रवाना हुए थे रामभक्त

जोधपुर से बैलगाड़ियों पर 108 कलश में 600 किलो घी लेकर संदीपनी महाराज के नेतृत्व में देव दीपावली (27 नवंबर ) को रामभक्त अयोध्या के लिए रवाना हुए थे। बैलगाड़ी जैसे रथों में इन कलश को रखा गया था। जोधपुर, पाली, ब्यावर, अजमेर, जयपुर, भरतपुर, लखनऊ होते हुए रथयात्रा गुरुवार सुबह 9 बजे अयोध्या पहुंची थी। इस मौके संदीपनी महाराज ने कहा- भगवान श्रीराम लला के मंदिर के लिए इस घी का उपयोग होगा। यह जोधपुर ही नहीं देश के लिए गौरव की बात है। हम कई युगों से देखते आ रहे हैं कि भगवान के लिए जो घी काम में लिया जाता है, वह गौ माता का होता है। खुशी है कि घी से भगवान की महाआरती की जाएगी। इसी घी से भगवान के लिए अखंड ज्योति भी प्रज्ज्वलित की जाएगी। यह घी भगवान के स्नान और पंचामृत के लिए भी काम आएगा।

चंपत राय बोले- जोधपुर से सर्वाधिक निधि समर्पित

श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय (Rajasthan) ने कहा- बनाड़ गोशाला जोधपुर के संदीपनी महाराज ने तीन माह पहले आकर यहां पर गौ माता का घी लाने की इच्छा जताई थी। जोधपुर वीरों की धरती है। यहां से प्रोफेसर महेंद्र अरोड़ा और मथानिया के सेठाराम माली ने 2 नवंबर 1990 को कारसेवा में बलिदान दिया था। इसी धरा से बैलगाड़ियों पर कलश में गौ माता का घी लाया गया है। धरती गौ माता के सींग पर टिकी है। सभी देवी देवता गाय के शरीर में निवास करते हैं। राम मंदिर निधि समर्पण के लिए जोधपुर प्रांत से पूरे देश में सबसे अधिक निधि समर्पित हुई थी।

इन कार्यों में किया जाएगा उपयोग

उन्होंने कहा- घी को अयोध्या में पंचकोसी परिक्रमा करवाई जा रही है। इसके बाद इन कलशों को मंदिर में प्रभु श्रीराम के लिए समर्पित किया जाएगा। इसी से भगवान का दीपक, प्राण प्रतिष्ठा के समय जो पूजन पाठ होगा। उसमें इस घी का सर्वोतम उपयोग हो पाएगा। हम नतमस्तक हैं। जोधपुर की धरती और वहां के निवासियों को प्रणाम करते हैं।

पहले था 108 भव्य रथ तैयार करने का प्लान

महर्षि संदीपनी महाराज ने बताया- पहले यह संकल्प था कि एक भव्य रथ में एक कलश होगा। कुल 108 रथ रवाना करना चाहते थे, लेकिन समय कम बचा। बीच में चुनाव आ गए। ऐसे में 11 रथों के अलावा 97 प्रतीक रथ तैयार किए। इनको मुख्य रथों में रखा गया। बैलों से खींचे जाने वाले रथ 11 थे। बाकी छोटे प्रतीक रथ शामिल किए गए। मुख्य रथों में घी के कलशों के अलावा शिवलिंग, भगवान गणेश व हनुमान की प्रतिमाएं, राम नाम लिखी पताका और हनुमान पताका लगाई गईं। इन रथों को गोशाला में ही 6 महीने में तैयार किया गया था। हर रथ पर 3.5 लाख रुपए लागत आई थी।

गोकशी से गायों को बचाया, उन्हीं का घी

महर्षि संदीपनी महाराज ने बताया- साल 2014 में जोधपुर से गोकशी के लिए गायें ट्रकों में भरकर ले जाई जा रही थीं। हमने ट्रकों को रुकवाया। कुल 60 गाय निकलीं। इन गायों को मुक्त कराया और आस-पास की गोशाला में ले गए। गोशाला वालों ने इन गायों को रखने से इनकार कर दिया। तब हमने बनाड़ (जोधपुर) में श्रीश्री महर्षि संदीपनी राम धर्म गोशाला की स्थापना की और इन गायों को पालने का संकल्प लिया। इन गायों से प्राप्त घी को इकट्‌ठा करते गए। यही चाहते थे कि इन गायों से जितना भी घी प्राप्त होगा, सारा घी बैलों से अयोध्या लेकर जाएंगे और भगवान राम के चरणों में समर्पित कर देंगे।

लोगों ने मजाक उड़ाया, संकल्प दृढ़ था

महर्षि संदीपनी महाराज ने बताया- जब इन 60 गायों का घी जुटाना शुरू किया तो लोगों ने कई सवाल किए और मजाक भी उड़ाया था। यात्रा कैसे पूरी होगी? इतना घी कहां से लाओगे? मैंने घी एकत्र करना जारी रखा। 2016 में लोग हमारा सहयोग करने लगे। शुरुआत में वे मटकी में घी जुटाते थे। ऐसे में गर्मी में घी पिघलकर बाहर आ जाता था। मटकियों में दरारें भी आने लगीं। एक-दो बार घी खराब भी हो गया। तब किसी संत से पता चला कि 5 अलग-अलग जड़ी-बूटियों के रस से घी को कई साल तक स्टोरेज किया जा सकता है। मैं हरिद्वार गया और वहां से ब्राह्मी व पान की पत्तियों समेत अन्य जड़ी-बूटियां लाया। इनका रस तैयार कर घी में मिलाया। इसके बाद इस घी को स्टील की टंकियों में डालकर AC के जरिए 16 डिग्री सेल्सियस तापमान में स्टोर किया।

ऐसे बनाया गया घी

पूरे घी को हर तीन साल में 1 बार पांच जड़ी-बूटियां मिलाकर (Rajasthan) उबाला गया। इसके लिए घी के बर्तनों को अच्छी तरह साफ किया। यही कारण है कि इतने साल में भी ये घी खराब नहीं हुआ। जिस कमरे में ये घी स्टोर किया गया, उसमें साफ-सफाई, वेंटिलेशन का ध्यान रखा।

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