Rajastha: राजेश्वर प्रसाद से राजेश पायलट तक का सफर, अन्तिम सांस तक रहे कांग्रेसी
Rajastha: राजनीति शुरू करने के लिए सीधे इंदिरा गांधी तक पहुंचेएक किस्सा ये भी है कि इस चुनाव से पहले राजेश्वर प्रसाद उर्फ पायलट एक दिन सीधे नई दिल्ली में इंदिरा गांधी के आवास पर पहुंच गए. उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के कह दिया कि वो अपनी राजनीतिक पारी शुरू करना चाहते हैं. वो भी सीधे किसानों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह के खिलाफ. यूपी के बागपत से लोकसभा चुनाव लड़कर. कुछ पल की खामोशी के बाद इंदिरा गांधी ने जवाब दिया कि मैं आपको राजनीति में आने की सलाह नहीं दूंगी.
आप वायुसेना से इस्तीफा न दें. आपका भविष्य वहीं उज्ज्वल है. तब उन्होंने तपाक से जवाब दिया. इंदिरा मैडम! एयर फोर्स में रहते हुए मैंने हवाई जहाज से दुश्मनों पर बम बरसाए हैं, तो क्या मैं लाठियों का सामना नहीं कर सकता. इंदिरा गांधी ने उस समय उनसे कोई वादा नहीं किया. बाद में उन्हें भरतपुर से लोकसभा का टिकट मिला.दबाव के आगे झुके बिना चर्चित चंद्रास्वामी को जेल भेजाराजस्थान के अलवर जिले में जन्मे चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी के सम्बन्ध इंदिरा गांधी से लेकर बाल ठाकरे तक से थे. उन्हें दिल्ली का बड़ा पॉवर ब्रोकर कहा जाता था. बैंकॉक के एक व्यापारी ने शिकायत की थी कि चंद्रास्वामी ने उनसे 1 करोड़ रुपए ठग लिए हैं. इसके बाद तत्कालीन मंत्री राजेश पायलट सख्त हुए और सरकारी एजेंसियों को जांच का जिम्मा सौंपा. जांच के बाद राजेश पायलट के निर्देश पर चंद्रास्वामी को गिरफ्तार किया गया. इसमें अड़चनें आईं तो राजेश पायलट और उनके सचिव ने खुद आदेश सम्बंधित पत्र ड्राफ्ट किया और इसके बाद पायलट ने पूछा कि अब बताइए, इसके बाद किस सबूत की ज़रूरत है ? यह अलग बात है कि इसके 2 दिन बाद ही पायलट से गृह मंत्रालय ले लिया गया. लेकिन वो समानांतर सत्ता चला रहे माफिया के आगे झुके नहीं.
कांग्रेस में बगावत, लेकिन अंतिम सांस तक कांग्रेसी रहे पायलट होने के नाते संजय गांधी से उनकी नजदीकियां ज्यादा थी और बाद में वे राजीव गांधी के भी करीबी रहे. जब राजीव गांधी की हत्या हुई तब राजनीति में उथल-पुथल मची, इसके बाद राजेश पायलट ने कई मौकों पर तेवर दिखाए. 1997 में इसका पहला उदाहरण देखने को मिला. राजेश पायलट ने सीताराम केसरी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा, जिसमें वे सफल नहीं हो पाए. यह वह दौर था जब कांग्रेस बिना गांधी परिवार के नेतृत्व के चल रही थी और लगभग बिखरती हुई नजर आ रही थी.माना जाता है कि यही कारण था कि सोनिया गांधी ने 1997 में कांग्रेस ज्वाइन की और 1998 में वह पार्टी की अध्यक्ष बन गई. जब जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और इसमें राजेश पायलट ने जितेंद्र प्रसाद का साथ दिया. इसी दौरान 11 जून 2000 को जयपुर आते समय एक सड़क दुर्घटना में राजेश पायलट की मौत हो गई. जितेंद्र प्रसाद भी चुनाव हार गए और सोनिया गांधी लगातार कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बनी रहीं. लेकिन आखिरी वक्त तक राजेश कांग्रेस के सच्चे सिपाही बने रहे.