Kota में 10वीं सदी का चन्द्रेश्वर महादेव मंदिर धराशाही होने की कगार पर, प्रशासन पर गंभीर आरोप
Kota: कोटा में यूं तो बहुत प्राचीन भगवान भोलेनाथ के मंदिर हैं, सभी की अपनी अलग ही गाथा है, लेकिन कोटा के चंद्रेसल गांव में बने चन्द्रेश्वर महादेव की भी अपनी महिमा है। कहा जाता है कि भगवान के दर्शन कर यहां जलाभिषेक करने मात्र से भगवान मनोकामना पूर्ण कर देते हैं। चम्बल (Chambal) की सहायक नदी चन्द्रलोई के तट पर बने इस मंदिर की प्राचीनता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह मंदिर जमीदोज होने के कगार पर है और यहां की नागा साधुओं की समाधियों पर जो लेख मिलता है वह अपने आप में अनूठा है।
पुरातत्व संपदा को संभालने वाला कोई नहीं!
चन्द्रेश्वर महादेव के इस स्थान को शिव मठ (Kota) भी कहा जाता है। शिव (Shiv) मठ में चार देवालय हैं। जिसमें शिव मंदिर के अलावा विष्णु मंदिर भी प्रमुख है। शिव मंदिर में कई प्रतिमाएं विद्यमान हैं जो मूर्तिकला की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं। चन्द्रेश्वर महादेव शिव भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर (Temple) में बेशकीमती पुरातत्व संपदा इधर-उधर बिखरी हुई है। जिसकी सार संभाल करने वाला कोई नहीं है।
जिला प्रशासन नहीं ले रहा सुध
मंदिर के पुजारी महंत के अनुसार, मंदिर के नाम पर 750 बीघा सिंचित भूमि है। लेकिन जिला प्रशासन द्वारा इसकी समय पर सुध नहीं लिए जाने के कारण श्रद्धालुओं में नाराजगी है। इस मंदिर पर होने वाली खेती का पैसा जिला प्रशासन के खाते में जाता है। अब तक मंदिर के खाते की जमीन का करोड़ों रूपया सरकार के पास हैं, लेकिन उसका उपयोग इस मंदिर के जीर्णोद्धार में नहीं किया जा रहा, हालाकी कुछ काम हुए हैं, लेकिन काम बीच में ही रोक दिया गया जिससे यह मंदिर धराशाही होने की कगार पर है।
नागा साधुओं ने यहां ली थी जिंदा समाधी
चन्द्रेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी व अन्य ग्रामीण (Kota) बताते हैं कि यहां नागा साधु रहा करते थे। जो कभी मंदिर से बाहर नहीं आते थे, एक गुफा सीधी नदी तक जाती थी और वहां से वह स्नान आदि कर वापस मंदिर में चले जाते थे। ग्रामीणों का कहना है कि दो साधुओं ने यहां जिंदा ही समाधि ली थी, जबकी अन्य कई नागा साधुओं की यहां समाधि आज भी देखी जा सकती है। इस मंदिर का शिवलिंग भी खंडित होता जा रहा है। अन्य प्रतिमाएं भी यहां बिखरी पड़ी हैं, जिनकी सार संभाल नहीं हो रही, यह मंदिर कोटा बसने से पूर्व का है।
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