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Rajasthan में कांग्रेस नेताओं को क्यों अपने पाले में करना चाहती हैं बीजेपी? क्या पार्टी से खफा होकर कांग्रेसी थाम रहे बीजेपी का दामन?

Jaipur: राजस्थान कांग्रेस में अब खलबली (Rajasthan) मची हुई है। अंदेशा है कि राजस्थान के कई मजबूत जनाधार वाले कांग्रेस नेता जल्द ही बीजेपी जॉइन करने वाले हैं। CWC मेंबर पूर्व कैबिनेट मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीय ने सबसे पहले इसके पक्के संकेत दिए हैं। इसके बाद से सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई कि न सिर्फ महेन्द्रजीत सिंह मालवीय बल्कि कांग्रेस के 3 पूर्व मंत्री लालचंद कटारिया, उदयलाल आंजना, राजेंद्र यादव व रिछपाल सिंह मिर्धा भी लगातार बीजेपी लीडरशिप के टच में हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्यों कांग्रेस के इन नेताओं के BJP जॉइनिंग की चर्चा है? क्या कांग्रेस मजबूरी है या कोई बड़ा सियासी अवसर? और सबसे अहम सवाल लोकसभा चुनाव में 400 पार सीटों का दावा करने वाली BJP क्यों कांग्रेस नेताओं को अपने पाले में करना चाहती है ?

महेंद्रजीत के बीजेपी में जानें की अटकले क्यों?

बांसवाड़ा संभाग में कांग्रेस के कद्दावर नेता और बागीदौरा से मौजूदा विधायक महेंद्रजीत सिंह मालवीय हाल में सोनिया गांधी के राज्यसभा से नामांकन के दौरान हुई कांग्रेस विधायकों की बैठक से गायब रहे थे। नामांकन के समय भी वो नहीं पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने बेणेश्वर धाम में राष्ट्रपति के दौरे के दौरान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात की थी। प्रतिपक्ष नेता के पद पर जूली के चयन के बाद से मालवीय की नाराजगी की खबरें तो आ रही थी, लेकिन इस घटना ने कंफर्म कर दिया कि मालवीय कुछ बड़ा सियासी कदम लेने वाले हैं।

क्या कांग्रेस से खफा है मालवीय?

इस बीच खबर मिली कि मालवीय दिल्ली में है (Rajasthan) और अब कभी भी BJP जॉइन कर सकते हैं। हालांकि, गुरुवार शाम में इन खबरों को निराधार बताने वाले मालवीय ने शुक्रवार सुबह मीडिया में बयान दिया कि कांग्रेस में जो पहले विजन था, वो अब नहीं रहा। मुझे तीन साल तक मंत्री नहीं बनाया। कांग्रेस कुछ लोगों के बीच घिर गई है। आगे देखते हैं, क्या होता है।

BJP में शामिल होने की क्या है वजह?

मालवीय के कांग्रेस छोड़ BJP में शामिल होने की बातों के पीछे उनकी सियासी मजबूरी भी है तो राजनीतिक फायदा भी। वागड़ के ट्राइबल बेल्ट में बड़े लीडर की कमी से जूझ रही BJP में उन्हें खुद के लिए बड़ा स्कोप नजर आ रहा है। वहीं उन्हें मोदी ब्रांड और राम मंदिर निर्माण के बाद बदली परिस्थितियों में BJP के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीत केंद्र में ट्राइबल कोटे से मंत्री बनने की संभावना भी साफ नजर आ रही है। इतना ही नहीं लोकल BJP लीडरशिप करप्शन के आरोपों को लेकर उनपर मुखर है, जिससे BJP जॉइन करने के बाद उन्हें निजात मिल सकती है।

ये दिग्गज भी छोड़ सकते हैं कांग्रेस का दामन

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास माने जाने वाले और उनकी सरकार में कृषि मंत्री रहे लालचंद कटारिया काफी लंबे टाइम से कांग्रेस में एक्टिव नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ा था और चुनाव प्रचार से भी गायब रहे थे। तर्क दिया कि फिलहाल सियासत नहीं अध्यात्म की और ध्यान दे रहे हैं। इस बीच उनकी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से हुई मुलाकातों के फोटो ने कई संकेत दिए। हालांकि खुद के BJP में जाने की अटकलों पर उन्होंने आज तक न तो कोई विराम लगाया है और न ही खुलकर कुछ कहा है। हाल ही में कटारिया का संघनिष्ठ लोगों से जुड़ाव भी बढ़ा है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि वो जल्द ही BJP जॉइन कर सकते हैं।

सियासत के मौसम विज्ञानी माने जाते हैं कटारिया

लालचंद कटारिया को जयपुर की राजनीति में सबसे बड़ा मौसम विज्ञानी माना जाता है। यहीं कारण है कि UPA सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे लालचंद कटारिया ने इसके बाद न तो साल 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा बल्कि मोदी की प्रचंड लहर में अगले साल 2014 व इसके बाद साल 2019 का लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ा। इस बीच झोटवाड़ा सीट से साल 2013 में उनकी फैमिली से रेखा कटारिया ने विधानसभा चुनाव लड़ा, वहीं उनकी जयपुर लोकसभा सीट से 2014 में सीपी जोशी और साल 2019 में कृष्णा पुनिया ने चुनाव लड़ा। ये तीनों ही चुनाव हार गए। साल 2018 में विधानसभा चुनावों में वापस एंट्री कर कटारिया ने झोटवाड़ा से चुनाव लड़ा और जीतकर कैबिनेट मंत्री बन गए। वहीं, इसके बाद 2023 में फिर से उन्होंने इलेक्शन नहीं लड़ा।

सियासी फायदे से ज्यादा राजनीतिक मजबूरी?

इस बार सियासी फायदे से ज्यादा राजनीतिक मजबूरी के चलते उनके बीजेपी में जाने की संभावनाएं बनती दिख रही हैं। मारवाड़ के बड़े सियासी खानदान मिर्धा परिवार के बेटे और डेगाना के पूर्व विधायक विजयपाल मिर्धा उनके दामाद हैं। तकरीबन डेढ़ साल से ज्यादा समय से विजयपाल मिर्धा का ड्राइवर लापता है। पूर्व मंत्री और मौजूदा डेगाना विधायक अजयसिंह किलक इस मामले को लेकर लंबे समय से मिर्धा फैमिली पर हमलावर है।

उदयलाल आंजना की भी कांग्रेस छोड़ने की अटकले तेज

गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे उदयलाल आंजना (Rajasthan) के समधी जीवाराम हाल में सांचौर से निर्दलीय चुनाव जीतकर विधायक बने हैं। वो BJP के बागी थे और उन्होंने BJP के कद्दावर नेता और सांसद देवजी पटेल को चुनाव हराया था। देवजी पटेल के चुनाव हारने और BJP के सत्ता में लौटने के बाद से ही आंजना के कांग्रेस छोड़ने की चर्चा तेज हो गई थी। इसके पीछे ये भी कारण है कि आंजना साल 2014 में उसी जालोर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, जहां से फिलहाल देवजी पटेल सांसद हैं। हालांकि तब उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी थी। अभी असेंबली चुनाव में देवजी की करारी हार के बाद BJP यहां टिकट बदल सकती है। ऐसे में आंजना समर्थकों को उम्मीद है कि राम मंदिर निर्माण व जीवाराम की बंपर जीत के बाद बदली परिस्थितियों में BJP का टिकट आंजना को दिल्ली पहुंचाने की गारंटी बन सकता है। आंजना से सवाल किए गए, लेकिन उन्होंने न तो इन चर्चाओं का खंडन किया और न ही कोई ठोस जानकारी दी। हालांकि पिछले कुछ दिनों से उनके अपने पैतृक गांव केसूंदा और निम्बाहेड़ा इलाके में ही होने की सूचना है।

केंद्रीय एजेंसियों के खौफ से छोड़ रहे पार्टी?

उदयलाल आंजना उन कांग्रेस नेताओं में शुमार रहे हैं जिनका नाम हर बार केंद्रीय एजेंसियों के रडार में रहता है। दरअसल उनकी भागीदारी वाली चेतक एंटरप्राइजेज देश में कई जगह फोरलेन और हाइवे निर्माण का कार्य कर रही है। असेंबली चुनाव के समय भी उनकी भागीदारी वाली इसी फर्म से जुड़े एक सीए के यहां सर्च हुई थी। वहीं करीब 5 साल पहले आंजना के ठिकानों पर भी इनकम टैक्स सर्वे हुआ था। वहीं, जालोर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऑफर भी उन्हें बड़े सियासी फायदे के तौर पर दिख रहा है।

अशोक गहलोत के खास नेताओं में राजेंद्र यादव की गिनती

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र यादव की भी गिनती अशोक गहलोत के खासमखास नेताओं में होती है। करीब 5 महीने पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीमों ने बहरोड़-कोटपूतली में राजेंद्र यादव के ठिकानों पर रेड की थी। मिड-डे मील सप्लाई गड़बड़ी से जुड़े मामले में हुई रेड में न सिर्फ यादव बल्कि उनके दोनों बेटों पर भी ईडी का शिकंजा कसना शुरू हो गया था। इस बीच राजस्थान में सत्ता परिवर्तन हो गया और BJP की सरकार बन गई। कोटपूतली से लगातार दो चुनाव जीतने वाले राजेंद्र यादव भी हार गए। इसके बाद से सियासी गलियारों में ये चर्चा छिड़ गई कि बदलती परिस्थितियों में ईडी के भंवर में फंसे यादव भी कांग्रेस छोड़ सकते हैं।

मारवाड़ के बड़े किसान नेता भी पार्टी छोड़ने की कगार पर

मारवाड़ के बड़े किसान नेताओं में शुमार रिछपाल सिंह मिर्धा को लेकर पिछले एक साल से चर्चा है कि वो कभी भी BJP जॉइन कर सकते हैं। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले उनकी भतीजी ज्योति मिर्धा ने भी BJP जॉइन कर ली थी। हालांकि तब भी ये चर्चा था कि वो भी भतीजी की राह पर ही चलने वाले हैं, लेकिन उसी समय कांग्रेस ने उन्हें वीर तेजा बोर्ड का पहला चेयरमैन बना दिया और बेटे विजयपाल मिर्धा को दोबारा डेगाना से और भतीजे तेजपाल मिर्धा को खींवसर विधानसभा से टिकट दे दिया था।

कांग्रेस में एक्टिव नहीं, तीनों ही चुनाव हारे

हालांकि ये दांव मिर्धा के लिए सियासी फायदे वाला साबित नहीं हुआ। न सिर्फ बेटे और भतीजे को हार नसीब हुई बल्कि BJP टिकट पर चुनाव लड़ने वाली भतीजी ज्योति को भी हार झेलनी पड़ी। कांग्रेस में उन्हें खुद का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है। उनके बयान भी इस ओर ही इशारा कर रहे है। हाल ही में उन्होंने कहा था कि मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी का कोई मुकाबला ही नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि राम मंदिर निर्माण के बाद बदले हालातों में कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में कोई स्कोप नहीं बचा है। मारवाड़ में कांग्रेस के बड़े लीडर्स में शुमार रिछपाल मिर्धा पूर्व केंद्रीय मंत्री नाथूराम मिर्धा के भतीजे है। परिवार को कानूनी पचड़ों से बचाने के लिए वो पहले भी एक बार BJP जॉइन कर चुके हैं।

और भी कई कारण से बदल सकते हैं पाला

तकरीबन डेढ़ साल से ज्यादा समय से मिर्धा के बेटे और डेगाना के पूर्व विधायक विजयपाल मिर्धा का ड्राइवर ताराचंद सेन लापता है। पूर्व मंत्री और मौजूदा डेगाना विधायक अजयसिंह किलक इस मामले को लेकर लंबे समय से मिर्धा परिवार पर हमलावर हैं। वहीं मिर्धा की बेटी तारा मिर्धा के पति और रेलवे में इंडियन रेलवे स्टोर्स सर्विस (IRSS) ऑफिसर रविंद्र भाकर भी सीबीआई के रडार पर है। करप्शन के आरोपों के बाद जनवरी 2023 में उन्होंने राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (NFDC) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं सीबीआई जांच शुरू होने के बाद दिसंबर 2023 में उनका फिल्म सेंसर बोर्ड के CEO पद से वापस मूल विभाग रेलवे में ट्रांसफर कर दिया गया था।

BJP क्यों कांग्रेस नेताओं को अपने पाले में करना चाहती है ?

राजस्थान में BJP सत्ता में भले ही आ गई, लेकिन इस विक्ट्री को लोकसभा चुनाव के लिहाज से केंद्रीय नेतृत्व ने कन्विंसिंग नहीं माना। आदिवासी बाहुल्य डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में भारतीय आदिवासी पार्टी(BAP) के उभार ने बीजेपी को खासा नुकसान पहुंचाया है। बीजेपी को बांसवाड़ा, डूंगरपुर की 9 में से केवल 2 सीटें मिली हैं। बांसवाड़ा की पांच में 4 सीटें कांग्रेस ने जीती है, जबकि डूंगरपुर में एक सीट बीजेपी और एक कांग्रेस के पास है। आदिवासी इलाके में बीजेपी को मजबूत नेता की तलाश थी। ऐसे में बीजेपी महेंद्र जीत सिंह मालवीय को पार्टी में शामिल करना चाह रही है। वहीं लालचंद कटारिया और रिछपाल मिर्धा प्रदेश के बड़े जाट लीडर्स माने जाते है। जालोर के मौजूदा सांसद देवजी पटेल की विधानसभा चुनाव में सांचौर सीट पर हुई करारी हार के बाद BJP के मिशन 25 में शामिल इस सीट पर परेशानियां बढ़ गई हैं। ऐसे में उदयलाल आंजना BJP के लिए यहां काफी मजबूत प्रत्याशी बन सकते हैं। वहीं राजेंद्र यादव को अपने पाले में कर BJP यादव वोटर्स पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।

BJP की लोकल लीडरशिप कर रही विरोध

कांग्रेस के इन सभी बड़े लीडर्स की BJP में जॉइनिंग का BJP की लोकल लीडरशिप विरोध कर रही है। यहीं कारण है कि इन लीडर्स की जॉइनिंग में देरी हो रही है। नागौर में मिर्धा और किलक परिवार की अदावत किसी से छिपी हुई नहीं है। पूर्व मंत्री अजय सिंह किलक लगातार उनका BJP में आने को लेकर विरोध कर रहे हैं। वहीं कमोबेश यहीं हाल लालचंद कटारिया, उदयलाल आंजना और राजेंद्र यादव की जॉइनिंग को लेकर भी है।

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